पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१३०] [पञ्चतन्त्र

अपने वज्र समान तीखे दांतों से जाल के बन्धन काट दिये। मन्थरक पानी में घुस गया। चित्रांग भी दौड़ गया।

व्याध ने चित्रांग को हाथ से निकलकर जाते देखा तो आश्चर्य में डूब गया। वापिस जाकर जब उसने देखा कि कछुआ भी जाल से निकलकर भाग गया है, तब उसके दुःख की सीमा न रही। वहीं एक शिला पर बैठकर वह विलाप करने लगा।

दूसरी ओर चारों मित्र लघुपतनक, मन्थरक, हिरण्यक और चित्रांग प्रसन्नता से फूले नहीं समाते थे। मित्रता के बल पर ही चारों ने व्याध से मुक्ति पाई थी।

मित्रता में बड़ी शक्ति है। मित्र-संग्रह करना जीवन की सफलता में बड़ा सहायक है। विवेकी व्यक्ति को सदा मित्र-प्राप्ति में यत्नशील रहना चाहिये।

 

॥ द्वितीय तन्त्र समाप्त ॥