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काकोलूकीयम्] | [१४७ |
यह कहकर उल्लू वहाँ से चला गया। कौवा बहुत चिन्तित हुआ वहीं बैठा रहा। उसने सोचा—"मैंने अकारण ही उल्लू से वैर मोल ले लिया। दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप करना और कटु सत्य कहना भी दुःखप्रद होता है।"
यही सोचता-सोचता वह कौवा वहाँ से आ गया। तभी से कौओं और उल्लुओं में स्वाभाविक वैर चला आता है।
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कहानी सुनने के बाद मेघवर्ण ने पूछा—"अब हमें क्या करना चाहिये?"
स्थिरजीवी ने धीरज बँधाते हुए कहा—"हमें छल द्वारा शत्रु पर विजय पानी चाहिये। छल से अत्यन्त बुद्धिमान् ब्राह्मण को भी मूर्ख बनाकर धूर्त्तों ने जीत लिया था।"
मेघवर्ण ने पूछा—"कैसे?"
स्थिरजीवी ने तब धूर्त्तों और ब्राह्मण की यह कथा सुनाई—