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५.

बहुतों से वैर न करो

'बहवो न विरोद्धव्या दुर्जया हि महाजनाः'

बहुतों के साथ विरोध न करे

एक वल्मीक में बहुत बड़ा काला नाग रहता था। अभिमानी होने के कारण उसका नाम था 'अतिदर्प'। एक दिन वह अपने बिल को छोड़कर एक और संकीर्ण बिल से बाहर जाने का यत्न करने लगा। इससे उसका शरीर कई स्थानों से छिल गया। जगह-जगह घाव हो गए, खून निकलने लगा। खून की गन्ध पाकर चींटियां आ गईं और उसे घेरकर तंग करने लगीं। सांप ने कई चींटियों को मारा, किन्तु कहाँ तक मारता? अन्त में चींटियों ने ही उसे काट-काट कर मार दिया।

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स्थिरजीवि ने कहा—"इसीलिए मैं कहता हूँ कि बहुतों के साथ विरोध न करो।"

मेघवर्ण—"आप जैसा आदेश करेंगे, वैसा ही मैं करूँगा।"

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