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काकोलूकीयम्] [१५३


"इससे पूर्व कि तुम मुझे जान से मार डालो, मेरी एक बात सुन लो। मैं मेघवर्ण का मन्त्री हूँ। मेघवर्ण ने ही मुझे घायल करके इस तरह फैंक दिया था। मैं तुम्हारे राजा से बहुत सी बातें कहना चाहता हूँ। उससे मेरी भेंट करवा दो।" सब उल्लुओं ने उलूकराज यह बात कही। उलूकराज स्वयं वहाँ आया। स्थिरजीवी को देखकर वह आश्चर्य से बोला—"तेरी यह दशा किसने कर दी?"

स्थिरजीवी—"देव! बात यह हुई कि दुष्ट मेघवर्ण आपके ऊपर सेना सहित आक्रमण करना चाहता था। मैंने उसे रोकते हुए कहा कि वे बहुत बलशाली हैं, उनसे युद्ध मत करो, उनसे सुलह कर लो। बलशाली शत्रु से सन्धि करना ही उचित है; उसे सब कुछ देकर भी वह अपने प्राणों की रक्षा तो कर ही लेता है। मेरी बात सुनकर उस दुष्ट मेघवर्ण ने समझा कि मैं आपका हितचिन्तक हूँ। इसीलिए वह मुझ पर झपट पड़ा। अब आप ही मेरे स्वामी हैं। मैं आपकी शरण आया हूँ। जब मेरे घाव भर जायंगे तो मैं स्वयं आपके साथ जाकर मेघवर्ण को खोज निकालूंगा और उसके सर्वनाश में आपका सहायक बनूंगा।"

स्थिरजीवी की बात सुनकर उलूकराज ने अपने सभी पुराने मंत्रियों से सलाह ली। उसके पास भी पांच मन्त्री थे; रक्ताक्ष, क्रूराक्ष, दीप्ताक्ष, वक्रनास, प्राकारकर्ण।

पहले उसने रक्ताक्ष से पूछा—"इस शरणागत शत्रु मन्त्री के साथ कौनसा व्यवहार किया जाय?" रक्ताक्ष ने कहा कि इसे