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१५४] [पञ्चतन्त्र

अविलम्ब मार दिया जाय। शत्रु को निर्बल अवस्था में ही मार देना चाहिए, अन्यथा बली होने के बाद वही दुर्जय हो जाता है। इसके अतिरिक्त एक और बात है; एक बार टूट कर जुड़ी हुई प्रीति स्नेह के अतिशय प्रदर्शन से भी बढ़ नहीं सकती।"

उलूकराज ने पूछा—"वह कैसे?"

रक्ताक्ष ने तब ब्राह्मण और साँप की यह कथा सुनाई—