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काकोलूकीयम्] [१५९

घुस गया, और जाते हुए कह गया कि "आगे कभी इधर आने का कष्ट न करना।"

यह कहानी कहने के बाद रक्ताक्ष ने कहा, "इसीलिए मैं कहता था कि एक बार टूटकर जुड़ी हुई प्रीति कभी स्थिर नहीं रहती।

रक्ताक्ष से सलाह लेने के बाद उलूकराज ने दूसरे मन्त्री क्रूराक्ष से सलाह ली कि स्थिरजीवी का क्या किया जाय?

क्रूराक्ष ने कहा—"महाराज! मेरी राय में तो शरणागत की हत्या पाप है। शरणागत का सत्कार हमें उसी तरह करना चाहिए जिस तरह कबूतर ने अपना माँस देकर किया था।

राजा ने पूछा—"किस तरह?"

तब क्रूराक्ष कपोत-व्याध की यह कहानी सुनाई—