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काकोलूकीयम्] [१६५


उस भयङ्कर आकृति वाले आदमी ने कहा—"मैं ब्रह्मराक्षस हूँ; तुम कौन हो, कहाँ जा रहे हो?"

चोर ने कहा—"मैं क्रूरकर्मा चोर हूँ, पास वाले ब्राह्मण के घर से बैलों की जोड़ी चुराने जा रहा हूँ।"

राक्षस ने कहा—"मित्र! पिछले छः दिन से मैंने कुछ भी नहीं खाया। चलो, आज उस ब्राह्मण को मारकर ही भूख मिटाऊँगा। हम दोनों एक ही मार्ग के यात्री हैं। चलो, साथ-साथ चलें।"

शाम को दोनों छिपकर ब्राह्मण के घर में घुस गये। ब्राह्मण के शैयाशायी होने के बाद राक्षस जब उसे खाने के लिये आगे बढ़ने लगा तो चोर ने कहा—"मित्र! यह बात न्यायानुकूल नहीं है। पहले मैं बैलों की जोड़ी चुरा लूँ, तब तू अपना काम करना।"

राक्षस ने कहा—"कभी बैलों को चुराते हुए खटका हो गया और ब्राह्मण जाग पड़ा तो अनर्थ हो जायगा, मैं भूखा ही रह जाऊँगा। इसलिये पहले मुझे ब्राह्मण को खा लेने दे, बाद में तुम चोरी कर लेना।"

चोर ने उत्तर दिया—"ब्राह्मण की हत्या करते हुए यदि ब्राह्मण बच गया और जागकर उसने रखवाली शुरू कर दी तो मैं चोरी नहीं कर सकूँगा। इसलिये पहले मुझे अपना काम कर लेने दे।"

दोनों में इस तरह की कहा-सुनी हो ही रही थी कि शोर सुनकर ब्राह्मण जाग उठा। उसे जागा हुआ देख चोर ने ब्राह्मण से कहा—"ब्राह्मण! यह राक्षस तेरी जान लेने लगा था, मैंने इसके हाथ से तेरी रक्षा कर दी।"