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१६६] [पञ्चतन्त्र


राक्षस बोला—"ब्राह्मण! यह चोर तेरे बैलों को चुराने आया था, मैंने तुझे बचा लिया।"

इस बातचीत में ब्राह्मण सावधान हो गया। लाठी उठाकर वह अपनी रक्षा के लिये तैयार हो गया। उसे तैयार देखकर दोनों भाग गये।

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उसकी बात सुनने के बाद अरिमर्दन ने फिर दूसरे मन्त्री 'प्राकारकर्ण' से पूछा—"सचिव! तुम्हारी क्या सम्मति है?"

प्राकारकर्ण ने कहा—"देव! यह शरणागत व्यक्ति अवध्य ही है। हमें अपने परस्पर के मर्मों की रक्षा करनी चाहिये। जो ऐसा नहीं करते वे वल्मीक में बैठे साँप की तरह नष्ट हो जाते हैं।"

अरिमर्दन ने पूछा—"किस तरह?"

प्राकारकर्ण ने तब वल्मीक और साँप की यह कहानी सुनाई—