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१७२] [पञ्चतन्त्र


जब वह विवाह योग्य अवस्था की हो गई तो पत्नी ने मुनि से कहा—"नाथ! अपनी कन्या अब विवाह योग्य हो गई है। इसके विवाह का प्रबन्ध कीजिये।" मुनि ने कहा—"मैं अभी आदित्य को बुलाकर इसे उसके हाथ सौंप देता हूँ। यदि इसे स्वीकार होगा तो उसके साथ विवाह कर लेगी, अन्यथा नहीं।" मुनि ने आदित्य को बुलाकर अपनी कन्या से पूछा—"पुत्री! क्या तुझे यह त्रिलोक का प्रकाश देने वाला सूर्य पतिरूप से स्वीकार है?" पुत्री ने उत्तर दिया—"तात! यह तो आग जैसा गरम है, मुझे स्वीकार नहीं। इससे अच्छा कोई वर बुलाइये।" मुनि ने सूर्य से पूछा कि वह अपने से अच्छा कोई वर बतलाये। सूर्य ने कहा—"मुझ से अच्छे मेघ हैं, जो मुझे ढककर छिपा लेते हैं।" मुनि ने मेघ को बुलाकर पूछा—"क्या यह तुझे स्वीकार है?" कन्या ने कहा—"यह तो बहुत काला है। इससे भी अच्छे किसी वर को बुलाओ।" मुनि ने मेघ से भी पूछा कि उससे अच्छा कौन है। मेघ ने कहा, "हम से अच्छी वायु है, जो हमें उड़ाकर दिशा-दिशाओं में ले जाती है।" मुनि ने वायु को बुलाया और कन्या से स्वीकृति पूछी। कन्या ने कहा—"तात! यह तो बड़ी चंचल है। इससे भी किसी अच्छे वर को बुलाओ।" मुनि ने वायु से भी पूछा कि उस से अच्छा कौन है। वायु ने कहा, "मुझ से अच्छा पर्वत है, जो बड़ी से बड़ी आँधी में भी स्थिर रहता है।" मुनि ने पर्वत को बुलाया तो कन्या ने कहा—"तात! यह तो बड़ा कठोर और गंभीर है, इससे अधिक अच्छा कोई वर बुलाओ।" मुनि