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१७४] [पञ्चतन्त्र


उलूकराज इन मीठे वचनों को सुनकर फूले न समाये। उन्होंने अपने साथियों को कहा कि स्थिरजीवी को यथेष्ट भोजन दिया जाय।

प्रतिदिन स्वादु और पुष्ट भोजन खाते-खाते स्थिरजीवी थोड़े ही दिनों में पहले जैसा मोटा और बलवान हो गया। रक्ताक्ष ने जब स्थिरजीवी को हृष्टपुष्ट होते देखा तो वह मन्त्रियों से बोला—"यहाँ सभी मूर्ख हैं। जिस तरह उस सोने की बीठ देने वाले पक्षी ने कहा था कि यहाँ सब मूर्ख हैं, उसी तरह मैं कहता हूँ "यहाँ सभी मूर्खमंडल है"।

मन्त्रियों ने पूछा—"किस पक्षी की तरह?"

तब रक्काक्ष ने स्वर्णपक्षी की यह कहानी सुनाई—