काकोलूकीयम्] | [१७९ |
आये थे। गीदड़ ने सोचा—"मेरी गुफा में कोई शेर गया अवश्य है, लेकिन वह बाहिर आया या नहीं, इसका पता कैसे लगाया जाय।" अन्त में उसे एक उपाय सूझ गया। गुफा के द्वार पर बैठकर वह किसी को संबोधन करके पुकारने लगा—"मित्र! मैं आ गया हूँ। तूने मुझे वचन दिया था कि मैं आऊँगा तो तू मुझसे बात करेगा। अब चुप क्यों है?"
गीदड़ की पुकार सुनकर शेर ने सोचा, 'शायद यह गुफा गीदड़ के आने पर खुद बोलती है और गीदड़ से बात करती है। जो आज मेरे डर से चुप है। इसकी चुप्पी से गीदड़ को मेरे यहां होने का सन्देह हो जायगा। इसलिये मैं स्वयं बोलकर गीदड़ को जवाब देता हूँ।' यह सोचकर शेर स्वयं गर्ज उठा।
शेर की गर्जना सुनकर गुफा भयङ्कर आवाज से गूंज उठी। गुफा से दूर के जानवर भी डर से इधर-उधर भागने लगे। गीदड़ भी गुफा के अन्दर से आती शेर की आवाज सुनकर वहां से भाग गया। अपनी मूर्खता से शेर ने स्वयं ही उस गीदड़ को भगा दिया जिसे पास लाकर वह खाना चाहता था। उसने यह न सोचा कि गुफा कभी बोल नहीं सकती। और गुफा का बोल सुनकर गीदड़ का संदेह पक्का हो जायगा।
रक्ताक्ष ने उक्त कहानी कहने के बाद अपने साथियों से कहा कि ऐसे मूर्ख समुदाय में रहना विपत्ति को पास बुलाना है।