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१८२] | [पञ्चतन्त्र |
स्वार्थ सोचता है। मान-मर्यादा की चिन्ता का त्याग करके वह स्वार्थ-साधन के लिये चिन्ताशील रहता है। अवसर देखकर उसे शत्रु को भी पीठ पर उठाकर चलना चाहिए, जैसे काले नाग ने मेंढकों को पीठ पर उठाया था, और सैर कराई थी।"
मेघवर्ण ने पूछा—"वह कैसे?"
स्थिरजीवी ने तब सांप और मेंढकों की यह कहानी सुनाई—