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१४.

स्वार्थसिद्धि परम लक्ष्य!

अपमानं पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठतः।
स्वार्थमभ्युद्धरेस्प्राज्ञः स्वार्थभ्रंशो हि मूर्खता।।


बुद्धमानी इसी में है कि स्वार्थ सिद्धि के लिये

मानापमान की चिन्ता छोड़ी जाय।

वरुण पर्वत के पास एक जङ्गल में मन्दविष नाम का बूढ़ा साँप रहता था। उसे बहुत दिनों से कुछ खाने को नहीं मिला था। बहुत भाग-दौड़ किये बिना खाने का उसने यह उपाय किया कि वह एक तालाब के पास चला गया। उसमें सैंकड़ों मेंढक रहते थे। तालाब के किनारे जाकर वह बहुत उदास और विरक्त-सा मुख बना कर बैठ गया। कुछ देर बाद एक मेंढक ने तालाब से निकल कर पूछा—"मामा! क्या बात है, आज कुछ खाते-पीते नहीं हो। इतने उदास से क्यों हो?"

साँप ने उत्तर दिया—"मित्र! मेरे उदास होने का विशेष कारण है। मेरे यहाँ आने का भी वही कारण है।"

(१८३)