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१९२] [पञ्चतन्त्र


मगरमच्छ ने सोचा, 'अब यह बन्दर मुझ से बचकर नहीं जा सकता, इसे अपने मन की बात कह देने में कोई हानि नहीं है। मृत्यु से पहले इसे अपने देवता के स्मरण का समय भी मिल जायगा।'

यह सोचकर मगरमच्छ ने अपने दिल का भेद खोल दिया—"मित्र! मैं तुझे अपनी पत्नी के आग्रह पर मारने के लिये यहाँ लाया हूँ। अब तेरा काल आ पहुँचा है। भगवान् का स्मरण कर, तेरे जीवन की घड़ियां अधिक नहीं हैं।"

बन्दर ने कहा—"भाई! मैंने तेरे साथ कौन सी बुराई की है, जिसका बदला तू मेरी मौत से लेना चाहता है? किस अभिप्राय से तू मुझे मारना चाहता है, बतला तो दे।"

मगरमच्छ—"अभिप्राय तो एक ही है, वह यह कि मेरी पत्नी तेरे मीठे दिल का रसास्वाद करना चाहती है।"

यह सुनकर नीति-कुशल बन्दर ने बड़े धीरज से कहा—"यदि यही बात थी तो तुमने मुझे वहीं क्यों नहीं कह दिया। मेरा दिल तो वहाँ वृक्ष के एक बिल में सदा सुरक्षित पड़ा रहता है; तेरे कहने पर मैं वहीं तुझे अपनी भाबी के लिये भेंट दे देता। अब तो मेरे पास दिल है ही नहीं। भाबी भूखी रह जायगी। मुझे तू अब दिल के बिना ही लिये जा रहा है।"

मगरमच्छ बन्दर की बात सुनकर प्रसन्न हो गया और बोला—"यदि ऐसा ही है तो चल! मैं तुझे फिर जामुन के वृक्ष तक पहुँचा देता हूँ। तू मुझे अपना दिल दे देना; मेरी दुष्ट पत्नी उसे खाकर