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लब्धप्रणाशम्] [१९३

प्रसन्न हो जायगी।" यह कहकर वह बन्दर को वापिस ले आया।

बन्दर किनारे पर पहुँचकर जल्दी से वृक्ष पर चढ़ गया। उसे, मानो नया जन्म मिला था। नीचे से मगरमच्छ ने कहा—"मित्र! अब वह अपना दिल मुझे दे दो। तेरी भाबी प्रतीक्षा कर रही होगी।"

बन्दर ने हंसते हुए उत्तर दिया—"मूर्ख! विश्वासघातक! तुझे इतना भी पता नहीं कि किसी के शरीर में दो दिल नहीं होते। कुशल चाहता है तो यहाँ से भाग जा, और आगे कभी यहाँ मत आना"

मगरमच्छ बहुत लज्जित होकर सोचने लगा, 'मैंने अपने दिल का भेद कहकर अच्छा नहीं किया।' फिर से उसका विश्वास पाने के लिये बोला—"मित्र! मैंने तो हँसी-हँसी में वह बात कही थी। उसे दिल पर न लगा। अतिथि बनकर हमारे घर पर चल। तेरी भाबी बड़ी उत्कंठा से तेरी प्रतीक्षा कर रही है।"

बन्दर बोला—"दुष्ट! अब मुझे धोखा देने की कोशिश मत कर। मैं तेरे अभिप्राय को जान चुका हूँ। भूखे आदमी का कोई भरोसा नहीं। ओछे लोगों के दिल में दया नहीं होती। एक बार विश्वास-घात होने के बाद मैं अब उसी तरह तेरा विश्वास नहीं करूँगा, जिस तरह गंगदत्त ने नहीं किया था।"

मगरमच्छ ने पूछा—"किस तरह?"

बन्दर ने तब गंगदत्त की कथा सुनाई—