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२०८] [पञ्चतन्त्र


शेरनी बोली—"प्रिय! जिसे तुमने बालक जानकर नहीं मारा, उसे मारकर मैं कैसे पेट भर सकती हूँ! मैं भी इसे बालक मानकर ही पाल लूँगी। समझ लूँगी कि यह मेरा तीसरा बच्चा है।" गीदड़ का बच्चा भी शेरनी का दूध पीकर खूब पुष्ट हो गया। और शेर के अन्य दो बच्चों के साथ खेलने लगा। शेर-शेरनी तीनों को प्रेम से एक समान रखते थे।

कुछ दिन बाद उस वन में एक मत्त हाथी आ गया। उसे देख कर शेर के दोनों बच्चे हाथी पर गुर्राते हुए उसकी ओर लपके। गीदड़ के बच्चे ने दोनों को ऐसा करने से मना करते हुए कहा—"यह हमारा कुलशत्रु है। उसके सामने नहीं जाना चाहिये। शत्रु से दूर रहना ही ठीक है।" यह कहकर वह घर की ओर भागा। शेर के बच्चे भी निरुत्साहित होकर पीछे लौट आये।

घर पहुँच कर शेर के दोनों बच्चों ने माँ-बाप से गीदड़ के बच्चे के भागने की शिकायत करते हुए उसकी कायरता का उपहास किया। गीदड़ का बच्चा इस उपहास से बहुत क्रोधित हो गया। लाल-लाल आँखें करके और होठों को फड़फड़ाते हुए वह उन दोनों को जली-कटी सुनाने लगा। तब, शेरनी ने उसे एकान्त में बुलाकर कहा कि—"इतना प्रलाप करना ठीक नहीं, वे तो तेरे छोटे भाई हैं, उनकी बात को टाल देना ही अच्छा है।"

गीदड़ का बच्चा शेरनी के समझाने-बुझाने पर और भी भड़क उठा और बोला—"मैं बहादुरी में, विद्या में या कौशल में उनसे किस बात में कम हूँ, जो वे मेरी हँसी उड़ाते हैं; मैं उन्हें इसका