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२१६] [पञ्चतन्त्र

आवाज़ सुन कर खुद भी अरड़ाना शुरू कर दिया। रखवाले शेर की खाल ओढ़े गधे पर टूट पड़े, और उसे इतना मारा कि बिचारा मर ही गया। उसकी वाचालता ने उसकी जान लेली।

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बन्दर मगर को यह कहानी कह ही रहा था कि मगर के एक पड़ोसी ने वहाँ आकर मगर को यह ख़बर दी कि उसकी स्त्री भूखी-प्यासी बैठी उसके आने की राह देखती-देखती मर गई। मगरमच्छ यह सुन कर व्याकुल हो गया और बन्दर से बोला—"मित्र क्षमा करना, मैं तो अब स्त्री-वियोग से भी दुःखी हूं।"

बन्दर ने हँसते हुए कहा—"यह तो मैं पहले ही जानता था कि तू स्त्री का दास है। अब उसका प्रमाण भी मिल गया। मूर्ख! ऐसी दुष्ट स्त्री की मृत्यु पर तो उत्सव मनाना चाहिये, दुःख नहीं। ऐसी स्त्रियाँ पुरुष के लिये विष समान होती हैं। बाहिर से वह जितनी अमृत समान मीठी लगती हैं, अन्दर से उतनी ही विष समान कड़वी होती हैं।"

मगर ने कहा—"मित्र! ऐसा ही होगा, किन्तु अब क्या करूँ? मैं तो दोनों ओर से जाता रहा। उधर पत्नी का वियोग हुआ, घर उजड़ गया; इधर तेरे जैसा मित्र छूट गया। यह भी दैवसंयोग की बात है। मेरी अवस्था उस किसान-पत्नी की तरह हो गई है जो पति से भी छूटी और धन से भी वंचित कर दी गई थी।"

बन्दर ने पूछा—"वह कैसे?"

तब मगर ने गीदड़ी और किसान-पत्नी की यह कथा सुनाई—