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८.

न घर का न घाट का

'विचित्रचरिताः स्त्रियः'


स्त्रियों का चरित्र बड़ा अजीब होता है।
स्वजनों को छोड़कर परकीयों के पास जाने
वाली स्त्रियाँ परकीर्यों से भी ठगी जाती हैं।

एक स्थान पर किसान पति-पत्नी रहते थे। किसान वृद्ध था, पत्नी जवान। अवस्था भेद से पत्नी का चरित्र दूषित हो गया था। उसके चरित्रहीन होने की बात गाँव भर में फैल गई थी।

एक दिन उसे एकान्त में पाकर एक जवान ठग ने कहा—"सुन्दरी! मैं भी विधुर हूँ, और वृद्ध की पत्नी होने के कारण तू भी विधवा समान है। चलो, हम यहाँ से दूर भाग कर प्रेम से रहें।" किसान-पत्नी को यह बात पसन्द आई। वह दूसरे ही दिन घर से सारा धन-आभूषण लेकर आ गई और दोनों दक्षिण दिशा की ओर वेग से चल पड़े। अभी दो कोस ही गये थे कि नदी आ गई।

वहाँ दोनों ठहर गये। जवान ठग के मन में पाप था। वह

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