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लब्धप्रणाशम्] [२२७

वह गाँव कैसा है? वहाँ के लोग कैसे हैं? वहाँ खाने-पीने की चीज़ें कैसी हैं?"

चित्रांग ने उत्तर दिया—"मित्रों, उस गाँव में खाने-पीने की चीज़ें तो बहुत अच्छी हैं, और गृह-पत्नियाँ भी नरम स्वभाव की हैं; किन्तु दूसरे गाँव में एक ही दोष है, अपनी जाति के ही कुत्ते बड़े खूंखार हैं।"

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बन्दर का उपदेश सुनकर मगरमच्छ ने मन ही मन निश्चय किया कि वह अपने घर पर स्वामित्व जमाने वाले मगरमच्छ से युद्ध करेगा। अन्त में यही हुआ। युद्ध में मगरमच्छ ने उसे मार दिया और देर तक सुखपूर्वक उस घर में रहता रहा।

 

॥चतुर्थ तंत्र समाप्त॥