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११.

कुत्ते का वैरी कुत्ता

'एको दोषो विदेशस्य स्वजातिर्यद्विरुध्यरों'

विदेश का यही दोष है कि वहाँ स्वजातीय

ही विरोध में खड़े हो जाते हैं।

एक गाँव में चित्रांग नाम का कुत्ता रहता था। वहां दुर्भिक्ष पड़ गया। अन्न के अभाव में कई कुत्तों का वंशनाश हो गया। चित्रांग ने भी दुर्भिक्ष से बचने के लिये दूसरे गाँव की राह ली। वहाँ पहुँच कर उसने एक घर में चोरी से जाकर भरपेट खाना खा लिया। जिसके घर खाना खाया था उसने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन घर से बाहर निकला तो आसपास के सब कुत्तों ने उसे घेर लिया। भयङ्कर लड़ाई हुई। चित्रांग के शरीर पर कई घाव लग गये। चित्रांग ने सोचा—'इससे तो अपना गाँव ही अच्छा है, जहाँ केवल दुर्भिक्ष है, जान के दुश्मन कुत्ते तो नहीं हैं।'

यह सोच कर वह वापिस आ गया। अपने गाँव आने पर उससे सब कुत्तों ने पूछा—"चित्रांग! दूसरे गाँव की बात सुना।

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