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[पञ्चतन्त्र
 

काले साँप का शरीर खँड-खँड हुआ पड़ा है। तब उसे नेवले की वीरता का ज्ञान हुआ। पश्चात्ताप से उसकी छाती फटने लगी।

इसी बीच ब्राह्मण देवशर्मा भी वहाँ आ गया। वहाँ आकर उसने अपनी पत्नी को विलाप करते देखा तो उसका मन भी सशंकित हो गया। किन्तु पुत्र को कुशलपूर्वक सोते देख उसका मन शान्त हुआ। पत्नी ने अपने पति देवशर्मा को रोते-रोते नेवले की मृत्यु का समाचार सुनाया और कहा—"मैं तुम्हें यहीं ठहर कर बच्चे की देख-भाल के लिये कह गई थी। तुमने भिक्षा के लोभ से मेरा कहना नहीं माना। इसी से यह परिणाम हुआ। मनुष्य को अतिलोभ नहीं करना चाहिये। अतिलोभ से कई बार मनुष्य के मस्तक पर चक्र लग जाता है।"

ब्राह्मण ने पूछा—"यह कैसे?"

ब्राह्मणी ने तब निम्न कथा सुनाई—