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[पञ्चतन्त्र
 


दूसरे ने इस बात का समर्थन किया। किन्तु, तीसरे ने कहा—"यह बात उचित नहीं है। बचपन से ही हम एक दूसरे के सुख दुःख के समभागी रहे हैं। हम जो भी धन कमायेंगे, उसमें इसका हिस्सा रहेगा। अपने-पराये की गणना छोटे दिल वालों का काम है। उदार-चरित व्यक्तियों के लिये सारा संसार ही अपना कुटुम्ब होता है। हमें उदारता दिखलानी चाहिये।"

उसकी बात मानकर चारों आगे चल पड़े। थोड़ी दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत-शरीर मिला। उसके अंग-प्रत्यंग बिखरे हुए थे। तीनों विद्याभिमानी युवकों ने कहा, "आओ! हम अपनी विज्ञान की शिक्षा की परीक्षा करें। विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत-शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं।" यह कह कर तीनों उसकी हड्डियाँ बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गये। एक ने अस्थिसंचय किया, दूसरे ने चर्म, मांस, रुधिर संयुक्त किया, तीसरे ने प्राणों के संचार की प्रक्रिया शुरू की। इतने में विज्ञान-शिक्षा से रहित, किन्तु बुद्धिमान् मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा—"ज़रा ठहरो! तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो। वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खाजायेगा"

वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। तब वह बुद्धिमान् बोला—"यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखलाना ही है तो दिखलाओ। लेकिन एक क्षण ठहर जाओ, मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊँ!" यह कहकर वह वृक्ष पर चढ़ गया।