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४.

चार मूर्ख पंडित

अपि शास्त्रेषु कुशला लोकाचारविवर्जिता।
सर्वे ते हास्यतां यान्ति यथा ते मूर्खपंडिताः॥


व्यवहार-बुद्धि के बिना पंडित भी मूर्ख होते हैं।

एक स्थान पर चार ब्राह्मण रहते थे। चारों विद्याभ्यास के लिये कान्यकुब्ज गये। निरन्तर १२ वर्ष तक विद्या पढ़ने के बाद वे सम्पूर्ण शास्त्रों के पारंगत विद्वान् हो गये, किन्तु व्यवहार-बुद्धि से चारों खाली थे। विद्याभ्यास के बाद चारों स्वदेश के लिये लौट पड़े। कुछ देर चलने के बाद रास्ता दो ओर फटता था। 'किस मार्ग से जाना चाहिये, इसका कोई भी निश्चय न करने पर वे वहीं बैठ गये। इसी समय वहाँ से एक मृत वैश्य बालक की अर्थी निकली। अर्थी के साथ बहुत से महाजन भी थे। 'महाजन' नाम से उनमें से एक को कुछ याद आ गया। उसने पुस्तक के पन्ने पलटकर देखा तो लिखा था—"महाजनो येन गतः स पन्थाः"—अर्थात् जिस मार्ग से महाजन जाये, वही मार्ग है। पुस्तक में लिखे

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