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२५४] [पञ्चतन्त्र

जाने की सलाह देती है। इसलिए मैं तो सुबह होने से पहले ही इस जलाशय को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ दूसरे जलाशय में चला जाऊँगा।" यह कहकर वह मेंढक मेंढकी को लेकर तालाब से चला गया।

दूसरे दिन अपने वचनानुसार वही मछियारे वहाँ आये। उन्होंने तालाब में जाल बिछा दिया। तालाब की सभी मछलियाँ जाल में फँस गईं। शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि ने बचाव के लिए बहुत से पैंतरे बदले, किन्तु मछियारे भी अनाड़ी न थे। उन्होंने चुन-चुन कर सब मछलियों को जाल में बाँध लिया। सबने तड़प-तड़प कर प्राण दिये।

सन्ध्या समय मछियारों ने मछलियों से भरे जाल को कन्धे पर उठा लिया। शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि बहुत भारी मछलियाँ थीं, इसीलिए इन दोनों को उन्होंने कन्धे पर और हाथों पर लटका लिया था। उनकी दुरवस्था देखकर मेंढक ने मेंढकी से कहा—

"देख प्रिये! मैं कितना दूरदर्शी हूं। जिस समय शतबुद्धि कन्धों पर और सहस्रबुद्धि हाथों में लटकी जा रही है, उस समय मैं एकबुद्धि इस छोटे से जलाशय के निर्मल जल में सानन्द विहार कर रहा हूँ। इसलिए मैं कहता हुँ कि विद्या से बुद्धि का स्थान ऊँचा है, और बुद्धि में भी सहस्रबुद्धि की अपेक्षा एकबुद्धि होना अधिक व्यावहारिक है।"

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