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अपरीक्षितकारकम्] | [२५५ |
यह कहानी पूरी होने के बाद चक्रधर ने पूछा—
"तो क्या मित्र की सलाह सदा माननी चाहिए?" स्वर्णसिद्धि ने उत्तर दिया—
"मित्र वचन का उल्लंघन ठीक नहीं है। जो विद्या-बुद्धि के अहंकार या लोभवश मित्र की बात को अनसुनी कर देते हैं वे अपने मित्र गीदड़ की बात न मानने वाले गधे की तरह कष्ट उठाते हैं।
चक्रधर ने पूछा—"वह कैसे?"
स्वर्णसिद्धि ने तब यह कथा सुनाई—