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मन्थरक के कहने के साथ ही उसका मनोरथ पूरा हो गया। उसके दो सिर और चार हाथ हो गये। किन्तु इस बदली हालत में जब वह गाँव में आया तो लोगों ने उसे राक्षस समझ लिया, और राक्षस-राक्षस कहकर सब उसपर टूट पड़े।

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चक्रधर ने कहा—"बात तो सच है। पत्नी की सलाह न मानता, और मित्र की ही मानता तो उसकी जान बच जाती। सभी लोग आशारूपी पिशाचिनी से दबे हुए ऐसे काम कर जाते हैं, जो जगत में हास्यास्पद होते हैं, जैसे सोमशर्मा के पिता ने किया था।"

स्वर्णसिद्धि ने पूछा—"किस तरह?"

तब, चक्रधर ने यह कथा सुनाई—