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८.

शेख़चिल्ली न बनो

अनागतवतीं चिन्तामसम्भाम्याँ करोति यः।
स एव पांदुरः शेते सोमशर्मपिता यथा।।


हवाई क़िले मत बाँधो

एक नगर में कोई कंजूस ब्राह्मण रहता था। उसने भिक्षा से प्राप्त सत्तुओं में से थोड़े से खाकर शेष से एक घड़ा भर लिया था। उस घड़े को उसने रस्सी से बाँधकर खूटी पर लटका दिया और उसके नीचे पास ही खटिया डालकर उसपर लेटे-लेटे विचित्र सपने लेने लगा, और कल्पना के हवाई घोड़े दौड़ाने लगा।

उसने सोचा कि जब देश में अकाल पड़ेगा तो इन सत्तुओं का मूल्य १०० रुपये हो जायगा। उन सौ रुपयों से मैं दो बकरियाँ लूँगा। छः महीने में उन दो बकरियों से कई बकरियें बन जायँगी। उन्हें बेचकर एक गाय लूँगा। गौओं के बाद भैंसे लूँगा और फिर घोड़े ले लूँगा। घोड़ों को महंगे दामों में बेचकर मेरे पास बहुत

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