पृष्ठ:पंचतन्त्र.pdf/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
अपरीक्षितकारकम्]
[२६७
 

उसने सोचा 'यह कलह किसी दिन सारे बन्दरसमाज के नाश का कारण हो जायगा। कारण यह कि जिस दिन कोई नौकर इस मेढे को जलती लकड़ी से मारेगा, उसी दिन यह मेढा घुड़साल में घुस कर आग लगा देगा। इससे कई घोड़े जल जायँगे। जलन के घावों को भरने के लिये बन्दरों की चर्बी की माँग पैदा होगी। तब, हम सब मारे जायँगे।'

इतनी दूर की बात सोचने के बाद उसने बन्दरों को सलाह दी कि वे अभी से राजगृह का त्याग कर दें। किन्तु उस समय बन्दरों ने उसकी बात को नहीं सुना। राजगृह में उन्हें मीठे-मीठे फल मिलते थे। उन्हें छोड़ कर वे कैसे जाते! उन्होंने वानरराज से कहा कि "बुढ़ापे के कारण तुम्हारी बुद्धि मन्द पड़ गई है। हम राजपुत्र के प्रेम-व्यवहार और अमृतसमान मीठे फलों को छोड़कर जंगल में नहीं जायँगे।"

वानरराज ने आँखों में आँसू भर कर कहा—"मूर्खों! तुम इस लोभ का परिणाम नहीं जानते। यह सुख तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा।" यह कहकर वानरराज स्वयं राजगृह छोड़कर वन में चला गया।

उसके जाने के बाद एक दिन वही बात हो गई जिस से वानरराज ने वानरों को सावधान किया था। एक लोभी मेढा जब रसोई में गया तो नौकर ने जलती लकड़ी उस पर फैंकी। मेढे के बाल जलने लगे। वहाँ से भाग कर वह अश्वशाला में घुस गया। उसकी चिनगारियों से अश्वशाला भी जल गई। कुछ घोड़े आग