पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/१६७

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12$ PAUMACARIU IV. Colophon at the end of the Paumacariu: 40. सिरि-विज्जाहर-कण्ठे सन्धीओ होन्ति वीस-परिमाणा। उमा-कण्डम्मि तहा वावीस मुणेह गणणाए। चउदह सुन्दरकण्डे एक्काहिय-वीस जुज्म-कण्डे य। उत्तर-कण्डे तेरह सन्धीओ णवह सब्वाउ॥ 41. 42. Same as 28. 43. Same as 34, with trifling variants. 44. Same as 31, with trifling variants. 45. चउमुह-सयम्भुएवाण वाणियत्यं अचक्खमाणेण । तिहुमण-सयम्भु-रइयं पञ्चमिचरियं महच्छरियं । 46. सव्वे वि सुआ पञ्जर-सुअ ब्व पढियक्खरा सिक्खन्ति । कहरायस्स सुओ पुण सुय व्व सुइ-गम्भ-संभूओ। 17. जइण हुउ छन्दचूडामणिस्स तिहुअण-सयम्भु लहुतणओ।। तो पद्धडिया-कव्वं सिरि-पञ्चमि को समारेउ। 48. सब्बो-वि जणो गेण्हड णिय-ताय-विढत्त-दम्ब-सन्ताणं । तिहुअण-सयम्भुणा पुणु गहियं सुकइत्त-सन्ताणं॥ 49. तिहुअण-सयम्भुमेक्कं मोत्तूण सयम्भु-कम्व-मयरहरो। को तरइ गन्तुमन्तं मझे णिस्सेस-सीसाणं ॥ 50. इय चारु पोमचरियं सयम्भुएवेण रइयं समत्तं। तिहुअण-सयम्भुणा तं समाणियं परिसमसमिणं॥ 51. चेष्टितमयनं चरितं करणं चारित्रमित्यमी यच्छब्दाः । पर्याया रामायणमित्युक्तं तेन चेष्टितं रामस्य ॥ वाचयति श्रुणोति जनस्तस्यायुर्वृद्धिमीयते पुण्यं च। आकृष्ट-खड्ग-हस्तो रिपुरपि न करोति वैरमुपश(म)मेति ।। माउर-सुब-सिरिकइराय-तणय-कय-पोमचरिय-अबसेसं। संपुण्णं संपुण्णं वन्दइमो लहइ संपुण्णं । 52. 58. 54. 55. गोइन्द-मयण-सुअणन्त (? त)-विरइयं वन्दइ-पढम-तणयस्स। वच्छल्लदाएँ तिहुअण-सयम्भुणा रइयं (?) महप्पयं ॥ वन्दइय-णाग-सिरिपाल-पहुइ-भध्वयण-गण-समूहस्स। आरोगत्त-समिद्धी-सन्ति-सुहं होउ सम्बस्स सत्त-महा-सग्गबगी ति-रयण-भूसा सु-रामकह-कण्णा। तिहमण-सयम्भु-जणिया परिणउ वन्दइय-मण-तणमं ॥ इति रामायणपुराणं समाप्तम् ।। 56.