पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/१९३

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18 PAUXADARIU ता xx चन्दणहि हरिय खर-दूसरेंहि ॥ VP. जावधिय दहवयणो विवरोक्खो xxx 12 3 2-3. तणुकधु कारणत्थं ताव खरदूसणेणं xxx हरिया चन्दणही। 9 11-12. 245 जिह कण्ण तेष पर-मायणिय । 245 कन्या नाम xx देया परस्मायेव निश्चयात् । 12 4 4. 9 32. VP. अनस्स होइ xxx कना। 9 15. 246 चसदह सहास विज्जाहरहुँ। 12 4 5. 246 VP. विजाहराण xxx चोइस सहस्सा। 916. 247 वणे णिवसन्तियाँ xxx 247 असूत च सुतं xxx विपिनवासया । सुर उप्पण्णु विराहिउ। 12 49. xxविराधिताभिख्यां प्राप्तः। 942-44. VP. सा दारयं पसूया नामेण विराहियकुमारं । 921. 248 एत्यन्तरें जम-जूरावणेण xxx रावणेण ॥ 248 (8) यमस्य परिमर्दकः । पट्टविड महामइ दूर तह (b) दशास्येन ततो दूतः xxx वालि जहि ॥ 12 51-2. प्रेषितोऽसौ महामतिः। 9 51a, VP. अह रावणेण तइया वालि-नरिन्दस्स पेसिओ दूओ। 924. 249xxxपुणु सूररड, 249 यमारातिं समुद्वास्थxxx जमुभवि तहाँपइसारुकत। 125 12. अर्करजाः स्थापितः। 954. VP. रिक्खरयाइश्चरया xxx निय-रजे ठविया मए xx जिणिऊण जर्म।9 27. 250 भाउ xxx णमहि तुहुँ। 12 5 148. 250 एहि प्रणाम मे कुरु । 9 56. VP. (a) लहुं एहि। 926. (b) कुणह पणामं । 928. 251वलेंवि घिउ अण्णमणु। 12 6 1. 251 विमुखं ज्ञात्वा । 958. 252 सीहविलम्बिएण । 1266. 252 नाना व्याघ्रविलम्बीति । 9 64. VP. वाचविलम्बी। 931. 253 अरें वालि देउ किं पई ण सुट xxx॥ 253 चतुःसमुद्रपर्यन्तं जम्बूद्वीपं क्षणेन यः। जो णिविसद्धेण पिहिवि कमइ, त्रिः परीत्य xxx पुनरागमत् ॥ 9 6. चत्तारि वि सायर परिममइ॥ 126 8. VP. (a) रे दूय किं न-याणसि वालिं। 9 32. (b) चउसागरपेरन्तं जम्मुदीवं पयाहिणं काउं। 93. 254 पणवेप्पिणु तिल्लोकाहिवा, 254 अन्यं न प्रणमामीति जिनपादाब्जयुग्मतः। सामण्णहाँ अण्णहों णड गवह 12 112. 984. VP. मोत्तण जिणवरिन्दं न पडह चलणेसु अन्नस्स। 929. 256 गुरु गयणचन्दु णामेण जहि । 12 116. 255 गगनचन्द्रस्य गुरोः । 990. VP. मुणिगयणचन्दस्स। 946. 256 भत्तावण-सिकहूँ। 12 1196. 256 VP. मायावन्तं सिलावडे । 961.