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पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/२६३

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10 पउमचरिउ [क०१४,४-९,१५,१-९,१६, १-२ अप्पुणु भरहु जेम णिक्खन्तउ तउ करेवि पुणु णिव्वुइ पत्तउ ॥ ४ ता एत्तहे" विणिहय-पडिवक्खों रज्जु करन्तहों तहाँ महरक्खहों ॥५ देवरक्खु उप्पण्णउँ णन्दणु गैरवइ एक-दिवसें" गउ उववणु ॥६ कीलण-चाविहें परिमिउँ णारिहिं ण्हाइ गइन्दुं व सहुँ गणियारिहि ॥७ । णिवडिय तासु दिहि तहि अवसरे जहिं मुउ महुयरु कमलब्भन्तरें* ॥८ । घत्ता॥ चिन्तिउ 'जिह धुअगाउ रस-लम्पडु अच्छन्तउ । तिह कामाउरु सव्वु कामिणि-चयणासत्तउ' ॥९ [१५] णिय-मणे जाइ विसायहों जाहिँ सवण-सङ्घ संपाइउ ताहिँ ॥ १ सयल वि रिसि तियाल-जोगेसर 'महकइ गमयं वाइ वाईसर ॥२ सयल वि वन्धु-सत्तु-समभावा तिण-कञ्चण-परिहरण-सहावा ॥३ सयल वि जल्ल-मलकिय-देहा धीरत्तणेण महीहर-जेहा॥ ४ सयल वि णिय-तव-तेएं दिणयर गम्भीरत्तणेण रयणायर ॥५ 15 सयल वि घोर-वीर-तव-तत्ता सयल वि सयल-सङ्ग-परिचत्ता ॥६ सयल वि कम्म-वन्ध-विद्धंसण सयल वि सयल-जीव-मम्भीसण ॥७ सयल वि परमागम-परियाणा काय-किलेसे केक-पहाणां ॥८ ॥ घत्ता ॥ सयल वि चरम-सरीर" सयल वि उज्जुय-चित्ता। णं परिणणहँ पय? सिद्धि-वहुये वरइत्ती ॥९ [१६] तो एत्यन्तरें' पहु आणन्दिउ सो रिसि सङ्घ तुरन्तें वन्दिउ ॥ १ पभणिउँ विण्णवेवि 'सुयसायर भो भो भवम्भोय-दिवायर ॥२ 11 A अप्पणु. 125 एत्तहि, A तेत्तहे. 13 5 गंदणु उप्पण्णउ. A उपजइ णंदणु. 14 SA इक्क. 15 A °दिवसि. 16 A कीलइ, कीलए. 17 ]' S परिमिहि. 18 PS गयंदु. 19 8 सहु. 220 P ; गणियारिहि. IS तहि. 22 अवसरि. 9818 जहि. 24 A कमलम्भंतरि. 251 वियगारउ, धुयगार उ.26 वणा". 15. 1 °मणि. : ? तावेहि, ताविहि. 3 तियाले. 4 s योगेसर, A जोग्गेसर. 5A गमइ वय. GA परिहण.78 "तेयं. 8A सम्व.9 किलेसिक्के कर. 10A पहाणा. 1178 सरीरा. 125 उज्जय. 13 ' परिणणहं, 5 परियणणहं. 14 P A पयहा. 15 SA वहू. 165 वरयत्ता. 16. 1 पुत्थंतरि. 2 P तुरतें. 3A पमणिउं. 4 P वेण्णवेवि, A ताम तेण. ३ महारक्षः [१५] १ महाशब्दाः (१). 2G