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पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/३२०

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    • 1,1-16;4,1-10) तेरहमो संधि

के सिरण पडिच्छिउ कुलिस-घाउ को णिग्गउ पञ्चाणण-मुहाउ ॥ ३ कों पइड जलन्तऐं जलणं-जालें को ठिउ कियन्त-दन्तन्तरालें ॥ ४ मारिच्चे बुच्चा देव देव स-भुअङ्गमु चन्दण-रुक्खु जेन ॥ ५ लम्विय-थिर-थोर-पलम्व-बाहु अच्छइ कहलासहों उवरि साहु॥६ मेरु व अकम्पु उवहि व अखोहु महियलु व बहु-क्समु चत्त-मोहु ॥७ मज्झण्डै-पयङ्गु व उग्ग-तेउ तहों तव-सत्तिएँ पडिखलिउ बेर्ड। ओसारि विमाणु दवत्ति देव फुट्टइ ण जाम खलु हियउ जेम' ९ ॥ घत्ता ॥ तं माम-वयणु णिसुणेप्पिणु दहमुहु हेदामुहु वैलिउ । गयणगण-लच्छि, केर जोषण-भारु णाइँ गलिस ॥ १० [३] । दुवई ।। तो गजन्त-मत्त-मायङ्ग-तुङ्ग-सिर-घट्ट-कन्धरो। उक्खय-मणि-सिलायलुच्छालिय-हल्लाविय-वसुन्धरो॥१ बहु-सूरकन्त-हुयवह-पलितु ससिकन्त-णीर-णिज्झर-किलित्तु ॥२ मरगय-मऊर्र-संदेह-वन्तु णील-मणि-पहन्धारिय-दियन्तु ॥३ वर-पउमराय-कर-णियर-तम्बु गय-मय-इ-पक्खालिय-णियम्बु ॥४ तरु-पडिय-पुप्फ-पङ्गुत्त-सिहरु मयरन्द-सुरां-रस-मत्त-भमरु ॥५ अहि-गिलिय गइन्द-पमुत्त-सासु सासुग्गय मोत्तिय-धवलियासु ॥६ सो तेहउ गिरि-कइलासु दिङ अण्णु वि मुणिवरु मुणिवर-परिदु ॥ ७ पञ्चारिउ 'लह मुणिओ सि मित्त स-कसाय-कोव-हुववह-पलित्त ॥ अजु वि रणु इच्छहि मइँ समाणु जइ रिसि तो किं थम्भिउ विमाणु ॥९ ॥ घत्ता ॥ जं" पइँ परिहव-रिणु दिण्ण तं स-कलन्तर अल्लवमि । पाहाणु जेम उम्मूलेंवि कहलासु में सायरे विवमि' ॥१० 38 कि सिरिण, A किं सरेण. 4 अलणे, 5 कयंत.6s जेब.78 माण, A मलमा 8 घेवु. 9 A दहमुहुं हेहामुहूं. 10 A बलिउ. 11 8 गयणगणि. 3. 1s तुरंग', A तुंग'. 2 A 'लुन्छलियपहलाविय'. 3 3 °सूरकंति.48 पवित. 58 किलित्त.68 मोह.78 पोमराय'.8 डिय'. 9Aधुरा'. 108 बह 11sa गदपत्त. 12 8 मुणिवर. 13 ईसाइकोबहुववा. 14 A . 15 sो. 16 विणलं. 15 20