पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/३३८

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१२५ 4.101-९११,१-९] पज्जरहमो संघि [१] जम-धणय-सहासकिरण-दमणु जं थिउ अडावऍ दहवयणु ॥१ तं पत्त वत्त णलकुवरहों दुल्ला-णयर परमेसरहों ॥२ परिचिन्तिउ 'हय-गय-रह-पवलें आसपणे परिट्टिएँ वइरि-वलें ॥३ एत्थु वि अमराहिवें रणे अजएँ जिण-चन्दणहत्तिएँ मेरु गएँ ॥४ एहएँ अवसरें उवाउ कवणु' तो मन्ति पवोलिउ हरिदवणु॥५ 'वलवन्तइँ जन्तई उट्ठवहाँ घउदिसु आसाल-विज ठवहों। जं होइ अछेउ अभेउ पुरु ता रक्खहुँ पावइ जाण सुरु' ॥७ तं णिसुणेवि तेहि मि तेम किउ सइ-चित्तु व णयरु दुलछु थिउ ।। ८ www www ॥ घत्ता॥ ताव विरुद्धेहि जस-लुद्धेहि रावण-भिच-सहासेंहिँ। वेहिउँ पुरवर संवच्छर णावइ वारह-मासेंहिं ॥९ [११] जन्तहँ भइयऍ विहडप्फडेंहिँ दहमुहहों कहिउ केहि मि भडेंहिँ ॥ १ 'दुग्गेज्झु भडारा तं णयरु दूसिद्धहुँ जिह तिहुअण-सिहरु ॥२ तहिँ जन्त-सयइँ समुडियइँ जम-करइँ जमेण व छड्डियइँ ॥३ जोयणहों मझें जो संचरइ सो पडिजीवन्तु ण णीसरई' ॥४ तं णिसुणेवि चिन्तावण्णु पहु थिउ ताम जाम उवरम्भ वहुं ॥ ५ अणुरत्त परोक्खए जे जसेंण जिह महुअरि कुसुम-गन्ध-वसेंण ॥६ ण गणइ कप्पूर ण चन्दमसु ण जलदु ण चन्दणु तामरसु ॥७ तहें दसमी कामावत्थ हुये विसग्नि-दहु ण कह मि मुय ॥८ 20 ॥ घत्ता ॥ 'इ, महु जोन्वणु ऍहु (सो) रावणु तोहले सहि एह रिद्धि परिवारहों। एत्तिउ फलु संसारहों॥९ जइ मेलावहि 10. 1 A fos. 2 p on tar. 3 P 8 ggarturarº. 4 p marginally froriquing कहलासि गए' पाठे. 5 PS अटुवहु, A भट्टबहु. 6 PA ठवहु, A उवहु. 7 जाम. 8 वेण वि.9 PS दुखंघु. 10 SA वेटिड. 11. 17 जंतुहं, s जंतुहु. 2 28 सिद्धहुं. 8 PS समोडियाई. 4 P उलंभ, s उब. ऊंभ.5 P8 बिरहु. 6 P परोक्खए, s परोक्खे. 7 8 जयं, जि. 8 A जलइ. 9PS गय. 10 A विरहगे. 118 ण. 12 Pइट. 13 PS मिलावहि. [११] १ (P's reading ) उपरम्भा राशी विरहं गता.