पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/३४७

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१३ पउमचरित [क०१२,१-५,१३.1-5 5 1a वुच्चइ दहवयणे [१२] जसु एहउ अत्थि 'सहाउ दुग्गु अण्णु वि साहणु अञ्चन्त-उग्गु ॥१ जसु अट्ठ लक्ख भद्दहुँ गया| वारह मन्दहुँ सोलह मयाहुँ॥ २ संकिण्ण-गइन्दहुँ वीस लक्ख रह-तुरय-भडहँ पुणु त्थि सङ्ख॥३ एहउ पहिलारउ मूल-सेण्णु वलु वीयउ मिच्चहँ तणउ अण्णु ॥४ तइयउ सेणी-वलु दुण्णिवारु चउथर्ड मित्त-वलु अणाय-पारु॥५ दुजउ पञ्चमउँ अमित्त-सेण्णु छट्ठउ आडविउ 'अणाय-गण्णु ॥ ६ रावण पुणु वृहहँ णाहि छेउ अमरा वि वलहँ ण मुणन्ति भेउ ॥७ हयगय-रह-णर-र्जुज्झहुँ तहेव सो सुरवइ जिजइ समरें केव' ॥ ॥ घत्ता ॥ 'जइ तं जिणमि ण आहयणे । तो अप्पउ पत्तमि जालामालाउले जलणें ॥९ [१३] इन्दइ पभणइ 'सुर-सार-भूअ किं जम्पिएण वहवेण दूअ ॥१ "जं किउ जम-धणयहुँ विहि मि ताहँ जं सहसकिरण-णलकुवराहँ ॥२ "तं तुहं वि करेसइ ताउ अज्जु लहु ठाउ पुरन्दरु जुज्झ-सज्जु'॥३ तं वयणु सुणेवि उद्वन्तएण चित्तौं वुच्चइ जन्तएण ॥ ४ 'हिम्मन्तिओ-सि इन्देण देव 'विजयन्तें इन्दइ तुहु मि ते ॥५ सिरिमालि कुमारेंहिँ ससिधएहिँ सुग्गीव तुहु मि सीहद्धएहि ॥ ६ जमराएं जम्वव-णील-णलहों हरिकेसि हत्थ-पहत्थ-खलहों ॥७ सोमेण विहीसण कुम्भयण्ण अवरेहि मि केहि मि के वि अण्ण.॥ ॥ घत्ता ॥ परिवाडिऍ तुम्हहुँ दिण्णउ ए णिमन्तणउ । भुञ्जेवउ सहि गरुअ-4हारा-भोयणउ' ॥९ 12. 1 Aणाहि. 2 A सवल.. 3 A इउ. 4 PS चउस्थउ. 5 18 °वारु. 6 पंचमडं, पंचमु. 7 PS ताहि. 8A जुज्संह.9 PS जालाउले जलंतजलणे. 13. 1 Aधणयहं. 25 तुहु मि. 3 Pणेमंतिउसि, 5 मंतिओसि. 4 P तेण.. 5 सिरिमाले. GPS हरिकेसी. 7 PS विहीसणु कुंभयण्णु. 8 5 भवरेहिं हणेसमि. 9 PS अण्णु. 10 P परिवाडिए. 11 A एउ. 12 A तुझ. 13 P मुंजेन्वउ, s मुंजेहउ. 14 PS पहारु रण. भोयणउ. 15 s wrongly numbers this Kadavuka as ॥ १४ ॥ [१२] १ सहाय, सद्भावो वा, दुर्गम्. २ अज्ञातगणणा. [१३] १ इन्द्रपुत्रेण.