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पृष्ठ:पउमचरिउ.djvu/७५

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PAUMACATIU o o o ४२. जइ सो कह वि वियट्टइ, ४२. जद रणि कह वि वियम्भह, तो सहुँ खन्धावारें, एक्क-पहारें। तो सहुँ चक्के सहुँ साहणे ण, पइ मि देव दलवट्टइ।। ४२ ९ पइँ मिणरिन्द णिसुम्भइ ॥१६५ १२-१३ ४३. को तुहुँ को भरहु ण भेउ को वि।४ ३ ६ ४३. को तुहुँ भरहु कवणु किर बुच्चह। १६ १६ ४ ४४. (a) परम-जिणेसरेण,जं कि पि ४४. (a) जं दिणं महेसिणा....णयर-देस- विहङ्गेवि दिण्णु। ४ ४ १ मेतं । १६ १९१ (b) इमु मण्डलु, () तहु मेइणि महु पोयणणयरु आसि समप्पिउ वप्पू । ४ ४ ९ आइजिणिन्दें दिण्णउँ। १६ १९ ११ ४५. किं वहिएण वराएं, भडसंघाएं। ४८९ ४५. कि किङकर-णियरें मारिएण, किर काइँ वराएं दण्डिएण ।१७९९-१०, ४६. उवरिल्लियएँ, हेट्ठिम दिट्ठि परज्जिय। ४६. हेट्ठिल दिट्ठि उवरिल्लियाइ, णिज्जिय ४७. उज्झहे दणु-दुग्गैन्झहें। ४ १४ ९ ४७. अउज्झहि वइरि-दुसज्झहि (V. 1.। दुगेज्झहि) ७ २६ २५ अउज्ज्ञ परम (v. 1. पर-) दुःगेन। ३ १० १७ ४८. सो पहु मुअउ अवारें णिज्जइ ४८. सो मुउ घर-दारेण ण णिज्जइ जिह सञ्झाएँ एउ पङकय-वणु, तणु लायण्णु वण्णु खणि खिज्जइ, तिह जराऐं धाइज्जइ जोव्वणु। कालालि मयरन्दु व पिज्जइ ॥१९१२ जीविउ जमेण सरीह हुआसें, सत्तई कालें रिद्धि विणासें ॥ ५२५-७ ४९. आयएँ लच्छिएँ वहु जुज्झाविय ४९. एयइ वसुमइ-धुत्तियड, पाहुणया इव वहु वोलाविय। ५१३८ वोलाविय के के णउणिवइ ।१५६३-४ मई पइ जेहा वहु वहाविय, पुहइइ पुहइ-पाल वोलाविय ।। १८२२ ५० जो जो को-इ जुवाणु, तासु तासु कुल-उत्ती॥ ५० ताएं भुत्त चिरु, पुत्ते सहुँ सुहुँ अच्छइ । मेइणि छेञ्छइ जेम, कवणे गरेण भुत्ती॥ वसुमइ-झेन्दुलिय, जगि केण-वि समउ ण गच्छइ। १५६१४-१५ महि-पुण्णालि व केण ण भुत्ती। १८ १७ ५१. पुण्य-भवन्तर-णेहें। ५ ७ ११ ५१. पुज्व-भवन्तर-णेह ९५ १४ ५२. (a)महु-पिङगल-लोयणु। ११ ४ ४ ५२. (a)णयणेहि महु-पिङगलो। ९ १७ ६ (B) चाववंसु। ११४८ (B) चाववंसो। ९१७१० ५३. जे जल-हत्यि-कुम्भ सोहिल्ला, ५३. काहि वि दिउ पयडु थणत्थलु, ते जि गाई थणं अद्धम्मिल्ला ॥ १४ ३ ६ णाई णिरङग-कुम्भि-कुम्भत्थलु ॥ २११४ ५४. गउ वइसणउ ण वड्डउ जीवणु, ५४. पहु-अग्गइ सेवा-दूसणउँ, ण करेवउ कयावि णिट्ठीवणु॥ पिट्ठीवणु जिम्भणु पहसणउँ॥ पाय-पसारणु हत्यप्फालणु, कम-कम्पणु अह णिहालणउ, उच्चालवणु समुच्च-णिहालणु ॥ हिक्कारसु भउँहा-चालणउँ॥ हसणु भसणु पर-आसण-पेल्लणु, खासणु घम्मिल्लामेल्लणउँ, गत्त-भडगु मुह-जम्भा मेल्लणु ॥ कर-मोडि परासण-पेल्लणउँ॥ ण णियडेण दूरे वइसेवउ, अवठ्ठम्भणु दप्पण-सणउँ, रत्त-विरत-चित्तु जाणेवउ ॥ अइजम्पणु सगुण-पसंसणउँ॥