पत्थर-युग के दो बुत ह - ग्रामक्ति नहीं रहती, और रतिभाव का उदय ही नहीं होता। ऐसी जिया शीघ्र ही महवाम को घृणित और गन्दा काम नम भने नगनी ह, यौर पति ने विरत हो धार्मिक भावना-प्रधान हो जाती है। परन्तु यदि स्त्री मवेदनशील है, और उसे अपन प्राप्नव्या पुन ज्ञान है, तव वात ही दूसरी हो जाती है। ज्यो-ज्या उम अपन प्राप्त के लिए अभिलापा और लालसा जागरित होती जाती है, वह अपन पति ने असन्तुष्ट और विरत होती जाती है । दमन्त्री म योर मनी जमीन-ग्राममान का अन्तर रहता है। पूर्वोक्त स्त्री पनि र नरी, IT ते घृणा करती है। पर यह स्त्री सहवास मे नहीं, पति नानी'। और किसी भी चतुर पुरुप को ऐसी स्त्री को अपनी तपट न पट जाने का अवसर दम तरह मिल जाता है। रेगा पा माम TAT T मावधान रहना चाहिए कि पत्नी कोई वेश्या नहीं? नर केवल अपने मुख की प्राप्ति करे। उसका अनिवार कनर हा नवा वह स्त्री को भी उसका प्राप्तव्य सपूर्ण मुब दे और पटने द। दि गेमा नहीं करता है तो उसका प्रेम चाहे जितना महान् हा का काडी के बरावर भो मूल्य नहीं आका जा सकता। चीन नितन :- गारीरिक मिलन ही नहीं है, बिना गहन मानतिर मिनन ।' सप्ण नहीं हो सकता। और यह शारीरिक मिलन-नान ग : ' मिलन ही वैवाहिक जीवन को सफलतामा नरने वटा गाना। जीवन एक दागनिक नन्य है, जोर नीचन में मनन दार्शनिक दृष्टिकोण होना चाहिए। वह दृष्टिकोना ना हो यावश्यक्ताग्रो के व्यावहारिक रूपो को ना नि : नमाज दोनों का विमान हो।
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