१०२ पत्थर-गुग के दो युत विरक्ति के भाव उत्पन्न हो गए। परन्तु यह योष्ट न ना। उसो मन को मदन के प्रति पोर घृणा से भर देना चाहता था। उसके हदा मे प्रवाह प्रेन ना दन के लिए-~~-अथवा किसी के भी लिए, जो उसका पति होगा। वह एक गीलवती मर्यादिता नारी थी। उच्च कोटि की निठा उममे थी। केवल शेष तीझ और असन्तोप ही से उसके मन मे परपुरुप का प्रवेश हो जा-एमी कमजोर और नचल मनकी स्नी वह न थी। मुझे उमके प्यार की पावसकता पीकेवल उसके तन को ही मैने नही चाहा, मन को भी अपनाना ने नाहा गौर यह तव तक सम्भव नहीं था जब तक कि में मग उनके मन को दन के पति घृणा प्रौर पिरक्ति मे न भरन् । गम मुझे ममय नगा । स्योति दत्त मे केवल एक ही गुटि थी कि कर गरमाहा । निगपर हि शराब का व्यमन करता था। पर 7 IIम भी करता र, परन्तु मै मात्र पान पुगह। दत भी ना हो । मुझे माफलता न मिगती। पर दाग पर दन को मिन्ता उत्पन्न हुई है जो HAIो। गाम वह अपना प्राव्य नहीं पा रहा है, जिसका 'प्राम।। पर मुझपर गन्दह नहीं करता है में उस दिश TTET बनाम पा की। परन्तु मायद सह मुझम गीरी पानीमामाहम नही कर मा। उमनपा ñitt 171 217117117 1
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