पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१०५

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दिलीपकुमार राय 1 - मैं समझता हूं कि मैं तलवार की धार पर चल रहा है। किसी भी मुझे उन खतरो का सामना करना पड़ सकता है जा जीवन-मनी समस्या के कठिन क्षणो मे या उपस्थित होत है। तो । चाले हैं, जिनमे ठोकर खाकर गिर पड़ने की भावना 11 ग्राज दत्त ने खतरे की घटी वजा दी है । वह कई दिन । युट - यह मे प्रत्यक्ष देख रहा था। 'चोर की दाढी में निना' हो चोर तो है ही । म उसकी विवाहिता पत्नी वा जार है । चलपि न यस स्वीकार करने से इन्कार करता है कि मैने उने पपट निया। ही स्वीकार कर चुका ह कि पहली ही दृष्टि मे मै उसपर नर निटाना। मन मे यह भावना उदय हुई थी कि वह मेरी है मेरे लिए है। 7-न-' पर कभी भी यह भाव प्रकट न होन दिया, दत्त नी मिलान न और रेखा के शीन से भयभीत होकर नी। परन्तु फिर ऐनी दी आई, जब वह अपने पति के व्यवहार ने अनन्तुष्ट हुई, चीनी ना हुई । मैंने उससे सहानुभूति ना मा पनापा । से उसवी सीन मो सोध मे तोर दुनको वदना मन । -नन। दिया। प्रकट मे में जहा उनकी प्रत्येक नावना नहानु वहा दत्त का नी परम हितैपी शुनचिना तापा। मर मे दत्त के विरोपी नावोना वीज वपन दिया।