सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
पत्थर-युग के दो बुत
१११
 

पत्थर-युग के दो वुन । वा याह . १ पि.ग हैं। बस, राय से उसकी घनिप्ठता है। पर राय पर उसकी भता क्या आसक्ति हो सकती है । अथवा दुनिया मे सब-कुछ हो सकता है । हे भगवान् यह मैं क्या सोचने लगा । छि -छि । मगर सब बाना पर विचार न मे क्या हर्ज है | राय तो बहुत दिन मे हमारे घर पाता है. के प्रथम से ही । जब मेरा व्याह नहीं हुअा था, मैं उनके घर जाताना। माया मुझसे खुलकर मिलती, हमती, वोलती थी। न मर मन मन विकार उत्पन्न हुअा, न उसके। हम दोनो गुद्व मित्र-माव ने हन । उसी प्रकार अब राय मेरे यहा रेसा से मिलता है ता-बाना है।.. के युग मे भला औरत को कही बावकर रगा जा माना' जैसी पत्नी पर मै अविश्वास करू, या राय-जैसे मित्र पर पर क्या यह उचित होगा? फिर भी एक वात म देसता है । अब रा गय ने भी नाम: भाति नही मिलती, हँसती, बोलती। उनके पान पर या ना प. बुनाई या पुस्तक लेकर बैठ जाती है, या टल जाती है। चार राव ना. उससे बात नहीं करता। क्या उसकी राय से नी रटर' ऐसी कोई बात मुझे तो मालूम नहीं । वह रेन्वा पा रही है । न पछता ह । मन ही मन बुटने से क्या लाभ ? "वैठो रेखा, बैठो, कितनी सुन्दर नन्च्या ह 'मनोवा जाए तो चलकर कोई अच्छी-नी पिक्चर देगी जाए। टनान : ग्राजपल कोई अच्छी पिक्चर नहीं लगी है।