यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११४
पत्थर-युग के दो बुत
११४ पत्थर-युग के दो वुत हँसना चाहिए।" न जाने कहा से एक अवसाद का अधेरा सागर उमड आया और मैं उसमे डूब गया। रेखा ने कहा, "पिक्चर देखने जाते थे, जाओ, देख प्रायो। तवियत बहल जाएगी।" 'नही, अब सोऊगा। सिर में दर्द है। "तो सो रहो।" इतना कहकर रेखा चली गई, और मुझे ऐसा लगा कि कोई नस कट गई है और सारे शरीर का खून निकल' गया है।