द -- स्वभाव होता है। परन्तु अायु की दृष्टि न बाला, तन्नी, बीटा क भिन्न-भिन्न गुण होते है फिर काम-प्रवृनि के नाव हे तीता-कता दे इगित है। इन सबको न जानने वाला गतिविद्या म मूट पुन्प नुन्दरी किया के यौवन को प्राप्त करके भी प्राप्त नहीं कर पाता है। उत्र, नई मैंने रेखा को प्राप्त करके भी नही प्राप्त किया है। न निराम--- । हिन्दू-वर्मशास्त्र, दयानन्द, टाल्स्टाय गावी बड़ी स्टार कि स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध मिफ, मन्तानोत्पनि मिाही दाना । इसलिए पुरुप को ऋतुकालानिगामी हाना चाहि: 7TH वान् पुरुप यही कहते है। पर वाम-विज्ञान महता केवल नीति या धर्म का ही प्रश्न नहीं है । पर और जीवन के प्रातिक विकास पा प्रान' । नानी विचार किया है और इसी निगग य पर पहुंचा दि उद्देश्य विभिन्न लैगीय असाधारण प्रानन्द की प्रापि । स्वास्थ्य और जीवन को ही उन्नति मिलती है न " . भी प्राप्त होती है। सहवास-सम्बन्धी माम तो न प्र; किसी को अधिकार है तो केवल चिकित्नर का 1 "ना से स्त्री-पुरपो के सह्वास पर प्रतिबन्ध लगा नाता है। सकता है कि वह जब यह देने कि उनन स्त्री ना.. सतरा है। और यह बात तो नपा गलत निर: वास्थ्य के लिए हानिकर है। 1 . 1 - "T . le
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