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पत्थर-युग के दो बुत
 

पत्थर-युग के दो वुत आमादा हू-पर कोई मिले भी तो कोई हाथ भी तो फैलाए इस हालत मे जब वेवी के व्याह की यह वहुत वडी ज़िम्मेदारी मेरे सिर पर सवार है, तो मैं रेखा से व्याह करने की बात पर कैसे राजी हो सकता हू | मेरे सामने सारी ही कठिनाइया हैं, सिर्फ वेवी ही की बात नही है । उन्हे मैं समझता हू। फिर मैं यदि सब लडकियो से, स्त्रियो से सम्बन्ध त्याग भी दू और रेखा के साथ व्याह कर भी लू, तो क्या अब मैं उसके साथ पति-पत्नी की तरह शान्त भाव से रह सकूगा, जबकि प्रत्येक क्षण मेरी स्मृति मे यह वात ताजा रहेगी कि रेखा एक पथभ्रप्टा पर-स्त्री है, और उसकी स्मृति मे यह कि राय लम्पट पुरुष है जिसने मेरा शील भग किया? क्या हम प्रगाढ पवित्र पति-पत्नी रह सकते हैं? नहीं-नही, नहीं रह सकते। एक सप्ताह से दत्त बाहर गया है, और अव उसकी आमद है। विला शक इस बार उस पर सव भडा फूट जाएगा। रेखा न कहे तब भी। नौकर- चाकर भी अव सव बातें जान गए है। दिन-भर और बडी रात तक घर से बाहर रेखा का रहना उससे नही छिपेगा । चाहता हू दिन रेखा यहा न पाए तो ही अच्छा है। न जाने दत्त कब आ जाए और रेखा को वह घर पर गैरहाजिर पाए तो गजव ही हो जाएगा। न जाने तब क्या हो । दत्त क्या कुछ कर बैठे | वह एक खम्ती-सनकी आदमी है चरित्रवान् है-लम्पट व्यक्ति नहीं है। उसमे बाल-बराबर भी प्रात्मग्लानि नहीं है। रेखा के प्रति वह एकनिष्ठ पति रहा है। वह उसका दुराचार यामानी से बर्दाश्त न कर सकेगा। इसी से तो मैं डर रहा हू । चाहता है, रेखा अव कुछ दिन न आए तो ही अच्छा है। पर रेखा मानती नहीं है, मेरे इस प्रस्ताव पर गुस्सा करती है। मुझे लानत-मलामत देती है। कायर-धोखेबाज़ तक तो मुझे उसने कह दिया। और मुझे भी गुस्सा आ गया, मैंने भी कह दिया, "अपने मज़े के लिए ही तुम मेरे गले पड़ी हो, कोई बच्ची नही हो। मुझे दोप देने का तुम्हे क्या कि अव कुछ . हक है " अच्छा तो यह है कि रेखा से अव पिण्ड ही टूट जाए। अब उसका