१५६ पत्थर-युग के दो वुत ? डालिंग | स्वीट रेखा, मैं दस दिन तक एक रात भी नही सोया । तुम्हारी याद मे तडपता रहा। सुनती हो । अजी, वहा वूघट निकालकर क्यो खडी हो ? वहुत बढिया साडी पहनी है | इस साडी मे जच रही हो। लेकिन जरा उस बक्स को तो खोलो। देखो, क्या है उसमे। वाह प्यारी | इस कदर खिलखिलाकर हंसने लगी । प्रोफ, ये इतनी तो कहा छूट रही हैं । मेरे कान बहरे हो जाएगे । सुनो-सुनो रेखा, मेरो वात सुनो। और मैं दोनो बाँहे पसारकर कमरे मे दौड रहा हूँ। पिनो दत्त, पियो । अभी बोतल मे काफी शराव है। ठीक कहते हो दोस्त । लामो फिर । और वोतल मुह से लगा लेता हू । बोतल फेंक देता ह । पैर लडखडा रहे है । हिचकिया आ रही है । लेकिन तुम हँस क्यो रही हो रेखा भगवान् की कसम म-म-मैं न- न-नशे मे नही हू । आओ, आओ, एक किस डालिंग, एक किस | प्रायो, चली प्रायो। लेकिन तुम्हारी आखो मे यह क्या चमक रहा है-लाल- लाल ? क्या तुमने भी पी है ? तब तो वहार ही बहार है । पिनो दत्त, पियो । आलमारी मे और दूसरी बोतल है। वाह दोस्त, खूब याद दिलाई । लामो फिर, लेकिन पानी खत्म । नीर ही सही। वोतल' मुह मे लगाता हू। अोह आग-आग-आग, जला- जला-जला-जला, ग्रा-ग्रा-ग आ-या-ग पिनो दत्त, पियो । अभी बोतल मे बाकी है। लामो फिर, रेखा, और पास आ जाओ। अरे, तुम तो लम्बी होती जा रही हो-पर्वत के समान-क-क-कैसे तुम्हे अक मे समेट्गा? अरी यो री चट्टान-पाषाण-पापाणी पा-या—अव-म-म मैं पाता हूँ। दोनो हाथ पसारकर चल रहा हू, और टकरा जाता हू आलमारी से—सिर चकरा गया। तीव्र वेदना-बडी ती-ब-खून-खून-खून ।
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