पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१७१

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रेखा ? सोकर उठने के वाद वे शान्त और स्वाभाविक ये, फिर भी उनके नेत्रो मे न जाने कैसा भाव था । मैं सुबह ही उनके रग-टग ने प्रेमी दर गई थी कि अव कुछ कहने का मुझमे साहस ही नहीं रहा। वे गाए, खुश थे । उन्होने मेरे साथ चाय पी, प्रद्युम्न को गोद मे पठार प्यार किया। उनकी यह ममता, सहनशीलता और प्रेम देवार नो मेरा रा मुह को ग्राने लगा। हाय, कैसे कप्ट की वात है कि मुझे दम पुग्प तो पति को छोड़कर जाना पड़ रहा है। पर म रह भी कने मरती । उनकी पत्नी में रही कहा मैं अपने मन का चोर भी आपको बता द। राय से मशक्ति । व्याह को क्यो वार-बार टालते है ? जो हो, म वापस लोट नाती रही-- यहा तक पहुचकर । आखिर मैंने यह वात उनसे कह दी। टान . यह जवान ? वे सुनकर कुछ अजव-सी चेप्टा करने लो। क्या वे पहर ही सव वाते जानते थे ? सुवह तो उनकी प्रत्येक चेष्टा उन्नती जेनी दी। जब तक चाय पीते रहे, प्रद्युम्न की ग्रोर वडे ध्यान ने देखते रह । या देख रहे थे वे भला इस तरह ? शायद वे वृद्ध पटना बात है। मार्ट गम्भीर ममभेदी वात । परन्तु पछ न सके, देवल मुनगर र ! शायद उन्हें इस बात का इत्मीनान नहीं हया नि न मत्र-11 नवा का जवाव द्गी । फिर अस्मात् ही उन्होंने सोई पिक्चर देसन गमन फिया। मैं नहीं न कह सकी। हम पिचर देवन नने। गन्न... हंसकर बाते करते रहे, प्रद्युम्न की दातो का उबार देते ! 1