पत्यर-युग के दो बुत बहुत याग्रह करके उसे बहुत-से खिलौने दिलवाए। रुपये वे इस तरह फेक रहे थे जैसे रद्दी कागज के टुकडे हो । मैं हैरान थी। मुझसे उन्होने कुछ खरीदने की बहुत जिद की। पर मैं कैसे कोई चीज़ अव उनकी ले सकती हू, जव मैंने स्वय अपने को वेवफा स्वीकार कर लिया है ? फिर, रात मैंने उनके सूटकेस को देख लिया था। कितनी चीजे वे मेरे लिए खरीदकर लाए थे। क्या ही अच्छा हो, भगवाद् ये दिन दु स्वप्न की भाति गायव कर दे, और हम फिर पुराने दाम्पत्य जीवन मे लौट आए उन्होने एक हीरे की अगुठी खरीदकर हँसते-हँसते मेरी उगली मे डाल दी। फिर चलते-चलते घर-गिरस्ती की बहुत वाते की। वाते कुछ अजब ढग की थी।-रुपये-पैसे, बैक-एकाउण्ट, इन्श्योरेन्स आदि की वाते। भला क्या काम हे इन सब बातो का | मेरा मन मोम हो गया है। एक वार ये कह दे कि रेखा, तू मेरी है, तो मैं निहाल हो जाऊ। मन होता है कि मैं उनके पैरो पर गिरकर क्षमा माग लू । अपने सब अपराध उन्हे बता द्, और जो दड दे, स्वीकार कर लू । मैने मन को भीतर से टटोलकर देख लिया है, अच्छी तरह-प्रेम जिसका नाम है वह राय के लिए जैसे अन्तस्तल मे नही है । और राय भी रम्म पीटते है, वासना-पूर्ति करते हैं। सबसे बढकर यह कि शादी को राजी नहीं होते। दत्त को तो जैसे मैं प्यार अव भी करती है। मैं अब तक अपने ही मन को घोसा देती रही, पर अब भीतर से एक आवेग उमड रहा है और मेरा मन दत्त के चरण चूमने को प्रवीर हो रहा है। भाड मे जाए राय, अाग लग जाए मेरी वासना मे । मेरा शरीर दुषित हो गया, पर मैग हृदय शुद्ध है। दत्त यदि मुझे क्षमा करके अपना ते, तो मैं उनकी एकनिष्ठ दामी बनकर रहगी। यह मिनेमा हाउन या गया । दत्त टिकट सरीद रहे है । शो अब प्रारभ होने ही वाला है। मना छ बन रहे है। प्रद्युम्न इन वडे पोस्टरों को ध्यान से देख रहा है। वे टिस्ट ले पाए हैं और हम बाक्म पर जा बैठे हैं। दन मेरी बगन मे हु, ऐमा प्रतीत होता है, इस ममय वे बहुत भावुक हो -
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