१८ पत्थर-युग के दो बुत और कितना सहानुभूति का-यह मैं न जान सकी। परन्तु प्यार की तो एक वूद भी नही है, यह अवश्य जान गई। वह रात तो गत वर्ष के समान थी, पर वह प्रभात वैसा न था। मुझे चुप देखकर उन्होने चाय की चुस्की लेते-लेते कहा ? " "चुप क्यो हो? क्या नाराज़ हो?" "क्या मुझे आपसे नाराज़ होने का भी अधिकार है ?" मैंने कहा। "क्यो नही | पर मेरा कसूर पहले साबित करना होगा।" "अापका कसूर क्या एक औरत मर्द के कसूर पर भी विचार कर सकती है "ज़रूर कर सकती है । यह तो स्त्री-पुरुप की समानता का युग है।" "पाप मानते है कि स्त्री-पुरुप समान है ?" "ज़रूर मानता हू।" "वैर, तो बताइए, कल आपने मेरे साथ अन्याय नही किया? इतने मेहमान आए, फिर पाप ही का वर्थ डे, और आप गायव कौन-सा काम था भला, सुनू तो?" "क्या तुम्हे मेरे उपस्थित न होने का कारण नही ज्ञात हुआ "हुग्रा-जब आपको उस हालत मे घर आते देसा।" "तो बस, यह मैंने तुम्हारी याज्ञा का पालन किया।" "मेरी प्राज्ञा का "भूल गई तुम, तुमने कहा था-'आज यहा ट्रिक न करना।" "सो तुमने और कही जाकर किया ।" "विलकुल ठीक | यहा तुमने अपनी तफरीह की। वहा मैंने अपने मित्रो का अनुरोध-पालन किया।" "लेकिन मेरा मतलब तो यह था कि पाप ड्रिंक करें ही नही।" "यह तो बेमतलव का मतलब है। हम यदि परस्पर एक-दूसरे के रोज़- रोज़ के कामो मे बात-बात पर प्रतिबन्ध लगाते रहे तो हमारा मिलकर साथ रहना दूभर हो जाएगा।" इतना कहकर उन्होंने एक विरक्ति का ?" ?" 6
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