पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१८९

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रेखा ilir घर के ही चिराग से घर में प्राग लागई। ग्रपन हो हा मानन प्राता सुहाग लुटा दिया | हाय रे भाग्य रने ही रहता है यी-ति, र. कारिणी बुद्धि । पैदा होते ही में क्यों नहीं मर र मार I THI घोटकर क्यो न मार डाला। जैसे मापिन अपरही। 1 है, वैसे ही मैंने सोने का पर फेंक दिया । लाज भी मै निर्लज्जी कहा तक पलपरा, र मेरी ही यशोगाथा का वसान हो रहा है। चे पर रीटा".-17 की वह, उच्चशिक्षा-प्राप्त में ग्रन्त म सुतिया इन T. 'दर, Til- गली कुत्तो के साप मारी-मारी फिरने वाली दुनिया ,