पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८० पत्यर-युग के दो बुत ? "तब लाचारी है। चलिए साहब।" सब नौकर-चाकर या जुटे हैं। प्रद्युम्न भी जग गया है । वह रो रहा है । 'डैडी-डैडी' पुकार रहा है। अव मैं क्या कहू ? क्या करू? क्या कर सकता हू "वेटे मेरे, ममी का ध्यान रखना।" मेरे मुह से निकला। आस् भी निकले, और निकलते चले जा रहे है। बूढा माली रो रहा है । वह रोते- रोते मेरे कदमो पर गिर गया है। मैं कह रहा हू, "रामू, मातकिन का ध्यान रसना । अभी डाक्टर को बुला लेना। लो, ये चाभिया है।" चाभियो का गुच्छा जेब से निकालकर मैंने उसे दिया है। "चलिए साहब मैं जा रहा हू रेखा, मैं जा रहा हू, जा रहा हू- डालिंग, मे मै जा रहा है। विदा, अलविदा ।"