पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१९१

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पत्थर-युग के दो वुत पर उनके प्राणों की रक्षा कन्गी। मैन वेबी को मिला लिया था-वह राजी भी हो गई । और हमने तय किया कि हम अपना वयान बदल देग। यह वयान दे देगे कि हत्या मैंने की है। बेबी गवाही देन को राजी हा गई यो, पर दत्त ने स्वीकार नहीं किया। किमी तरह स्वीकार नहीं दिया। मेरे आसुप्रो पर भी वे नही पतीजे। पीर हर चन्द यही कहते रहे - मैने राय को मारा है। मैं उनका जिम्मेवार है। वे कहते हैं जिम प्रप- राधी नही, मैंने उस आदमी को मारकर कर्तव्य का ही पालन रिया। अब कौन उन्हे समझाए । एक मूत्र बदननीव प्रोरल रो ता दुर्भागन से वासना का शिकार हो गई, दनना वडा दण्ड मित बा।।37ीर का सव प्राप्तव्य छीनकर केवल जीवन-निजी जीवन दिया गया। अरे, इस पृथ्वी पर इतने नर-नारी रत' । कसा भी है जो मुझ मदभागिनी पर दया परे, मुन पनिता मा पा I- सारा ससार ही निष्ठुर हो गया। 731 Tit! f 10 विधाता ही रूठ गया उसे सहारा कहा मिलेगा नेता ने भी नहीं बताया था कि मेरा दुभाग्य पहाट बगपर बरा । पहाड से पहाड ही टकरा गया ।। आमू-ग्राम-ग्राम् । यहा ते वहा तर-घर , नहानदन : सब सुख-सुविधायो के साथ रहती है और उन मन का दत्त बन्द है-मेरे यानुप्रो को नदी बह रही है । किन्तु यतीनही . - ड्ब रही ह, सारी दुनिया ता अपनी ही धुन म है । नेर प्र. पर असर नहीं है, किती पर नहीं है। ग्राम दुनिया ने दिया है, दत्त के साप ही। यात ही तो मन नगरिन । दुनिया पे। पति ही स्त्री की दुनिया हाग है। पति ही - १ है, जीवन का नहारा है नव-छह नव-न । कर पसीजे? 2