रेखा मेरे विवाह से पहले ही से राय की दत्त से मित्रता है। दत्त उनसे सदा खुश रहे है । जहा तक मैं जानती ह, वे दत्त के सबसे निकट के अन्त- रग मित्र हैं। इसी से प्रारम्भ से ही मैंने उनका एक प्रात्मीय की भाति सत्कार किया। वे भी मुझे 'भाभी' कहते रहे । यह भाभी भी अजब रिश्ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि भाभी मे देवरो का कुछ हिस्सा रहता है। पत्निया पति से भीत-शकित रहती हैं, पर देवर से नही। वे निस्मकोच देवरो पर अपनी फरमाइशें जडती रहती हैं और वे खुशी से उनकी पूर्ति करते हैं। पति वह गडरिया है, जो डडा मारकर भेड की भाति पत्नी को हाकता है। वह केवल शासन करता है—प्रेम-भावना प्रकट नही करता। पत्नी पर शासन करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। उसकी कामचेप्टा भी मुर्गे के समान है जो एक प्रकार का बलात्कार ही है। वह कबूतर की भाति कबूतरी की खुशामद नही करता । स्त्री प्रेम की भूखी है और उसकी यह भूख कितनी तीव्र है, इसपर पति कभी विचार नहीं करता। पति पत्नी पर नाराज़ भी होता है, जवाब भी तलव करता है, अनुशासन भी रखता है। पर देवर न अनुशासन रखता है, न नाराज़ होता है, केवल हनकर भाभी की सब अभिलापाए पूर्ण करता है । यह भाभी सम्बोधन भी कितना मधुर है । फिर वह किसी सुन्दर, सभ्य और भावुक तरण के मुख ने नुन पडे तो और भी मीठा हो जाता है। राय तरण नहीं हैं। मेरे पति से उनकी उम्र कुछ अधिक है। कापदे के अनुसार वे मुझे भाभी कहने का अधिकार नही रखते। पर मुभीने के
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